छठ पूजा की कहानी क्या है?
छठ पूजा की शुरुआत रामायण के बाद हुई थी, अब ऐसा क्या हुआ कि इस पूजा की शुरुआत हुई, इसका क्या महत्व है और वह कौन सी गलती है जो छठ पूजा के दौरान नहीं करनी चाहिए, आइए जानते हैं दोस्तों, पुरानी मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि जब भगवान श्री राम और माता सीता रावण का वध करने के बाद अयोध्या लौटे तो उन्होंने व्रत रखा और रामायण के दौरान छठ पूजा की शुरुआत हुई। ऐसा भी माना जाता है कि इसका कारण यह है कि वे सूर्य देव के पुत्र हैं। वे सूर्य देव के बहुत बड़े भक्त थे और सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए घंटों पानी में खड़े रहते थे। इतना ही नहीं द्रौपती अपने पांचों पतियों पांडवों के स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए भी सूर्य देव की पूजा करती थीं, इसीलिए कहा जाता है कि द्रौपदी का जीवन उन्हीं को समर्पित था। आस्था और विश्वास के कारण ही पांडव अपना राज वापस पाने में सफल हुए थे।
छठ पूजा से जुड़ी एक और पौराणिक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार कहा जाता है कि राजा प्रियव्रत और रानी मलुमी निःसंतान थे जिससे वे काफी दुखी थे, तब महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्र कामेश दिया। उन्होंने जब यज्ञ कराया तो महर्षि कश्यप ने परिस्थितियों को ठीक करने के लिए प्रसाद के रूप में रानी मालिनी को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। कुछ समय बाद राजा और रानी को पुत्र की प्राप्ति हुई। रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन दोनों का भाग्य इतना खराब था कि बालक मृदुावस्था में पैदा हुआ। राजा प्रियव्रत अपने पुत्र का शव देखकर पूरी तरह टूट गए और जब वह अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए तो उन्होंने सोचा कि उन्हें इसके प्राण त्याग देने चाहिए, तभी उनके सामने देवसेना यानि षष्ठी देवी प्रकट हुईं। वहां षड्देवी भी प्रकट हुईं जिन्हें षष्ठी के नाम से जाना जाता है। छठी देवी ने राजा से कहा कि यदि कोई उनकी सच्चे मन से पूजा करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। देवी ने राजा को उनकी पूजा षष्ठी की तरह करने की सलाह दी। यह सुनकर राजा ने छठ देवी को व्रत और सच्चे मन से प्रार्थना करके प्रसन्न किया। छठी देवी ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। कहा जाता है कि जिस दिन राजा ने पूजा की वह कार्तिक शुक्ल की षष्ठी का दिन था। और तब से लेकर आज तक यह प्रचलित हो गया जहां आज भी लोग संतान प्राप्ति और अपने परिवार के सदस्यों की सुख, समृद्धि और लंबी आयु के लिए यह व्रत रखते हैं।
(Chhath Puja) छत पूजा के पहले दिन का नियम
मित्रों छठ पूजा एक कठिन परिश्रम के समान है जिसे हर कोई नहीं रख सकता वैसे तो कुछ पुरुष भी हैं जो छठ पूजा का पूरे विधि-विधान से पालन करते हैं और व्रत रखते हैं लेकिन अधिकतर महिलाएं ही इस व्रत को करती नजर आएंगी जिसमें पहला दिन नहाय खाय होता है। सबसे पहले घर की साफ-सफाई कर शुद्धिकरण किया जाता है जिसके बाद घर की रखवाली करने वाली महिलाएं स्नान करके खुद को साफ करती हैं। स्नान के बाद खुद को शुद्ध करती हैं और सप्तमी भोजन करके व्रत की शुरुआत करती हैं। इस दिन रोटी के साथ चने और लौकी की सब्जी भी डालते हैं। पका हुआ भोजन खाया जाता है सबसे पहले व्रती महिलाएं इसे खाती हैं उसके बाद परिवार के बाकी सदस्य खाते हैं और फिर दोस्तों आता हैं।
(Chhath Puja) छत पूजा के दूसरा दिन का नियम
छठ पूजा का दूसरा दिन जिसे खरना कहते हैं। इस दिन व्रत करने वाला व्यक्ति पूरे दिन इसे खा सकता है। जिसमें न तो वो कुछ खा सकते हैं और न ही कुछ पी सकते हैं शाम को प्रसाद के तौर पर गढ़वाली खीर बनाई जाती है ठीक वैसे ही जैसे रूस के लोग खीर खाते हैं और इस खीर को व्रत रखने वाले लोग पूजा के बाद और उसी रात खाते हैं। छठ मैया के लिए प्रसाद के रूप में गेहूं से बनी चाशनी और घी से बनी ठेठुआ मिठाई बनाई जाती है।
(Chhath Puja) छत पूजा के तीसरा दिन का नियम
दोस्तों, छठ पूजा का तीसरा दिन है। संध्या आरती का यह तीसरा दिन छठ पूजा का मुख्य दिन होता है। इस दिन लोग निर्जला व्रत रखते हैं और फिर शाम को। वे नदी तालाब के पास इकट्ठा होंगे और डूबते सूर्य को नमस्कार करेंगे। जब लोग सूर्य देव को प्रणाम करने जा रहे होते हैं, तो उनका बेटा या परिवार का कोई पुरुष महंगे जैसे बांस से बनी टोकरी लेकर आगे चल रहा होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस बांस की टोकरी यानी टोकरी में फल, प्रसाद और अन्य पूजा सामग्री रखी जाती है।
(Chhath Puja) छत पूजा के चौथे दिन का नियम
अब दोस्तों अगर छठ पूजा के चौथे दिन की बात करें तो इसे उषा यानी वो दिन कहा जाता है जिसमें लोग उगते सूरज की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं। लोग अपने पूरे परिवार के साथ एक बार फिर नदियां तालाब के पास इकट्ठा होकर सूर्य देव की पूजा करते हैं ताकि वे उड़ते हुए सूरज की पूजा कर सकें। उनके गीत छठी मैया को प्रसन्न करने का द्वार होते हैं और फिर अंत में व्रत रखने वाले लोग प्रसाद और कच्चे दूध का शरबत पीकर अपना व्रत तोड़ते हैं और इस तरह पूरे चार दिनों के बाद छठ पूजा और इसका कठिन व्रत समाप्त हो जाता है
छठ पूजा करने के दौरान किन किन महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए
छठ पूजा के दौरान साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि बिना हाथ धोए किसी भी चीज को न छुएं। जो महिलाएं छठ मैया का व्रत रखती हैं उन्हें पूरे चार दिन तक बिस्तर या खाट पर ही रहना चाहिए। दोस्तों आपको सूर्य देव को जल अर्पित करना है। दिखावट महत्वपूर्ण है लेकिन ध्यान रखें कि जल अर्पित करने के लिए चांदी का उपयोग किया जाता है। या प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग न करें। व्रत रखने वाली महिलाओं को छठ का प्रसाद बनाते समय कुछ भी नहीं खाना चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रसाद ऐसी जगह बनाना चाहिए जहां हर दिन खाना न बनता हो क्योंकि यह वास्तव में बहुत कष्टकारी व्रत है। हर छोटी-छोटी बात का ध्यान रखा जाता है। छठ व्रत रखने वाले लोगों को मांस को मदरसे से दूर रखना चाहिए। अगर वे या उनके परिवार में कोई भी इसका सेवन करता है तो छठ माता नाराज हो जाती हैं. छठ पूजा के दिनों में फलाहार नहीं किया जाता है. पूजा पूरी करने के बाद ही भोजन करना चाहिए. ये सब बातें सुनने के बाद आपको एक बात अच्छे से समझ आ गई होगी कि छठ पूजा करना कितना कठिन है।
व्रत रखना उससे भी ज्यादा जरूरी है और हर कोई इसे नहीं कर सकता. क्या आपको पता है लेकिन अगर कोई ये व्रत रखता है तो उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, छठ मैया उससे खुश होती हैं और उसके जीवन में सुख समृद्धि आदि आती है तो दोस्तों उम्मीद करता हूं कि आपको छठ पूजा के बारे में सारी जानकारी मिल गई होगी बाकी आप छठ पूजा के बारे में जानिए।
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